डिजिटल अरेस्ट: साइबर अपराधियों द्वारा ठगी का खतरनाक तरीका, इससे कैसे बचें?

 जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नये-नये आविष्कार होते जा रहे हैं वैसे-वैसे साइबर अपराधी भी आम लोगों से पैसे ऐंठने के नए-नए तरीके खोज रहे हैं और उनकी मेहनत की कमाई को लूट रहे हैं, इन साइबर अपराधियों के दो प्रमुख हथियार हैं, लोगों का लालच और उनका डर। डिजिटल अरेस्ट में इन अपराधियों द्वारा लोगों से ठगी करने के लिए आम लोगों के अंदर के डर का प्रयोग किया जाता है और उनसे पैसे ठगे जाते हैं, आइये जानते हैं इस डिजिटल अरेस्ट के बारे में विस्तार से।

डिजिटल अरेस्ट: साइबर अपराधियों द्वारा ठगी का खतरनाक तरीका, इससे कैसे बचें?

डिजिटल अरेस्ट क्या है ?

कानून की नजर में डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज नहीं होती, मतलब कि कानून की भाषा में इसे परिभाषित नहीं किया गया है, ये सिर्फ साइबर अपराधियों द्वारा ऑनलाइन फ्रॉड या स्कैम करने का एक मनोवैज्ञानिक जाल है जिसमें साइबर अपराधी लोगों को नकली पुलिस, सीबीआई, एनआईए, कस्टम या फिर इस तरह के किसी भी जाँच एजेंसी या फिर किसी सरकारी संस्था जैसे सेबी, ट्राई आदि के अधिकारी के रूप में लोगों को सामान्य फ़ोन कॉल और वीडियो कॉल करके डिजिटली अरेस्ट करने की कोशिश करते हैं।

सामान्य फ़ोन कॉल से शुरुआत करते हुए ये ठग, पीड़ित/पीड़िता को किसी खाली कमरे में वीडियो कॉल पर बात करने को कहते हैं, पीड़ित/पीड़िता को विश्वास दिलाने के लिए कि ये असली पुलिस या जाँच अधिकारी हैं, अपने नकली ऑफिस का सेटअप, नकली आईडी कार्ड और नकली दस्तावेज दिखाते हैं और पीड़ित/पीड़िता को अपने कमरे के चारों कैमरा घूमाने को कहते हैं ताकि ये सुनिश्चित कर सकें कि पीड़ित/पीड़िता के आस-पास कोई नहीं है और फिर ये किसी अपराध में पीड़ित/पीड़िता का नाम आने की बात करते हैं और मामला रफा-दफा करने के लिए ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करने के लिए करते हैं, इस पूरे फोनकॉल के दौरान ठग, पीड़ित/पीड़िता को वीडियो कॉल को काटने से सख्त मना करते हैं या डराते हैं और पीड़ित/पीड़िता को उसके ही घर में बंधक बना लेते हैं।

साइबर अपराधियों द्वारा पीड़ितों को डराने के लिए प्रयोग किये जाने वाले कुछ प्रमुख केस और अपराध:

साइबर अपराधियों या ठगों द्वारा लोगों को कई तरह के अपराधों में शामिल होने की बात कर डराया जाता है, कुछ प्रमुख केस और अपराध निम्न हैं :-

  1. मनी लॉन्ड्रिंग: ठग, पीड़ित/पीड़िता के मोबाइल नंबर या बैंक अकाउंट का किसी मनी लॉन्ड्रिंग केस में इस्तेमाल होने और पीड़ित/पीड़िता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने की बात कहते हैं।
  2. ड्रग ट्रैफिकिंग: पीड़ित/पीड़िता को बताया जाता है कि उनके नाम से कोई पार्सल पकड़ा गया है जिसमें प्रतिबंधित ड्रग (जैसे- कोकिन, हेरोइन आदि) पाया गया है जिसके कारण पीड़ित/पीड़िता पर नशा तस्करी का केस बनाया गया है।
  3. पहचान चोरी और धोखाधड़ी: ठगों द्वारा पीड़ित/पीड़िता का आधार या पैन नंबर का किसी अवैध काम में प्रयोग होने की बात कहकर जांच में सहयोग करने के लिए कहा जाता है।
  4. टैक्स चोरी: ठग ये दावा करते हैं कि पीड़ित/पीड़िता ने टैक्स चोरी की है और अब इनकम टैक्स विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की नजर उन पर पड़ चुकी है और वो टैक्स चोरी के केस में फंस चुके हैं।
  5. अवैध पार्सल: ठग पीड़ित/पीड़िता को बताते हैं कि एक पार्सल पकड़ा गया है जिस पर उनका नाम और पता लिखा हुआ है, इस पार्सल में प्रतिबंधित सामान(जैसे- जाली पासपोर्ट, हथियार या कोई भी अवैध सामान) पाया गया है, इसलिए पीड़ित/पीड़िता पर क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी।
  6. साइबर अपराध: ये ठग खुद साइबर अपराधी होते हैं और पीड़ित/पीड़िता को कहते हैं कि उनके स्मार्टफोन या कंप्यूटर से कोई हैकिंग या फिशिंग अटैक किया गया है, उनका लोकेशन ट्रेस किया जा चुका है और उनके ऊपर साइबर अपराध का केस भी दर्ज हो चुका है।
  7. मानव तस्करी: ये ठग कई बार मानव तस्करी के केस में पीड़ित/पीड़िता के शामिल होने की बातकर धमकाते हुए कहते हैं कि अगर पैसे नहीं दिए तो पीड़ित/पीड़िता को जेल होगी।
  8. आतंकी गतिविधि: ठग ये कहकर डराते हैं कि पीड़ित/पीड़िता का बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर या किसी पहचान-पत्र का प्रयोग आतंकी फंडिंग या किसी आतंकी घटना में किया गया है और अब सीबीआई या एनआईए उनके खिलाफ कार्यवाही करने वाली है।
  9. फर्जी अरेस्ट वारंट: ठग, पीड़ित/पीड़िता को किसी अपराध के कारण कोर्ट से उनके खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट जारी होने की बात करते हैं और सेटलमेंट के लिए पैसे नहीं देने पर कभी गिरफ़्तार किये जाने की धमकी देते हैं।
  10. परिवार के सदस्य का किसी अपराध में शामिल होना: ठग, ये दावा करते हैं कि पीड़ित/पीड़िता के परिवार के किसी सदस्य(जैसे- पति/पत्नी, भाई/बहन, बेटा/बेटी या कोई और सदस्य) को किसी अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, उन्हें छुड़ाने के लिए पैसे चाहिए। 

 ये कुछ प्रमुख अपराध और मामले हैं जिनका प्रयोग आमतौर पर साइबर अपराधी, लोगों को डराकर पैसे ठगने के लिए करते हैं, इनके आलावा भी बहुत सारे आरोप या अपराध हैं जिनके द्वारा ये ठग, लोगों को कानून का डर दिखाकर पैसे ठगते हैं।

साइबर अपराधी, डिजिटल अरेस्ट स्कैम के लिए लोगों की निजी जानकारी कैसे हासिल करते हैं ?

साइबर अपराधी या ठग उन्हीं लोगों को टारगेट करते हैं जिनके पास बहुत पैसे होने की संभावना होती है, ये पैसे कुछ हजार से लेकर लाखों या करोड़ों हो सकते हैं, अब सवाल ये आता है कि इन ठगों के पास ऐसे लोगों की निजी जानकारी कैसे और कहाँ से आती है?

साइबर अपराधी डिजिटल अरेस्ट स्कैम के लिए कई तरह से लोगों की व्यक्तिगत जानकारी इकठ्ठा करते हैं, जो निम्न हैं :

  • प्रीमयम सेवाओं के डेटा लीक्स : साइबर अपराधी, महँगी सेवाएं जैसे लक्सरी ब्रांड्स, प्राइवेट बैंक्स, प्रीमयम मेम्बरशिप्स (उदहारण के लिए अमेज़न प्राइम, नेटफ्लिक्स, स्पॉटीफाई आदि) के डेटा लीक्स से जानकारियां लेते हैं, इस डेटा से ये पता लगाते हैं कि कौन लोग इस तरह की महँगी सेवाओं के लिए पैसे आसानी से देते हैं।
  • डार्क वेब से खरीदना : डार्क वेब के अंदर धनी लोगों के नाम, पते, कॉन्टेक्ट नम्बर्स और बैंक डिटेल्स आसानी से कुछ सौ या हजार रुपयों में साइबर अपराधियों को मिल जाते हैं, इस तरह की लिस्ट अक्सर हैक्ड डेटाबेस या इनसाइडर लीक्स से बनती है।
  • सोशल मीडिया से जीवनशैली का अध्ययन : कई लोग अलग-अलग सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स में कई तरह के फोटोज़ या वीडियोज़ पोस्ट करते रहते हैं जिनमें महँगी-महँगी चीजें या जीवनशैली दिखाई जाती हैं जैसे, महंगे फ़ोन, कार, घर, कपड़े आदि, इसके साथ ही लोग अपनी निजी जानकारियां भी कई बार सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देते हैं। साइबर अपराधी इस तरह के पोस्ट्स पर नजर रखते हैं और ऐसे लोगों को टारगेट करते हैं।
  • प्रोफेसनल डेटाबेस : साइबर अपराधी, प्रोफेसनल प्लैटफॉर्म्स जैसे लिंक्डइन या फिर जॉब पोर्टल्स से लोगों के डेटा जमा करते हैं, इन प्लेटफॉर्म्स में अक्सर उच्च आय या बचत वाले लोग होते हैं, जिनको टारगेट किया जाता है।
  • फिशिंग से वित्तीय जानकारी जुटाना : साइबर अपराधी, फर्जी एसएमएस या ईमेल भेजकर भी लोगों के बैंक डिटेल्स या निवेश की जानकारी मांगते है उदहारण के लिए, केवाइसी अपडेट के लिए फर्जी एसएमएस या ईमेल भेजकर ये अपराधी, लोगों की जानकारी जुटाते हैं।
  • कॉल सेंटर और टेलीमार्केटिंग लिस्ट : साइबर अपराधी, कॉल सेंटर और टेलीमार्केटिंग एजेंसीज से लिस्ट्स, जिनमें वैल्थी लोगों के डिटेल्स होते हैं, खरीदते हैं और उनको टारगेट करते हैं।

इनके अलावा भी कई और तरीकों से साइबर अपराधी या ठग, लोगों की निजी जानकारियां जमा करके लोगों के साथ डिजिटल अरेस्ट स्कैम करते हैं।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम के कुछ उदाहरण 

  • डिजिटल अरेस्ट स्कैम के हजारों केस हैं और आये दिन समाचारों में इसकी घटनाएं पढ़ने और सुनने को मिलती हैं, ये स्कैम कितना खतरनाक है हम इन कुछ उदाहरणों से इसकी गंभीरता को जान सकते हैं:मुंबई में एक 86 वर्षीय बुजुर्ग महिला से लगभग 20.25 करोड़ रुपये का डिजिटल अरेस्ट स्कैम किया गया। इस महिला को दिसम्बर 2024 से मार्च 2025 तक साइबर अपराधियों द्वारा डिजिटल अरेस्ट में रख गया, इन अपराधियों ने फर्जी पुलिस अधिकारी बनकर महिला को बताया कि उनके आधार कार्ड का दुरुपयोग मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध गतिविधियों में किया गया है। महिला को क़ानूनी कार्यवाही और उनके परिवार फंसाने की धमकी दी गयी और उन्हें लगातार निगरानी में रखा गया, उनको घर में रहने और किसी से भी बात नहीं करने को कहा गया, वीडियो कॉल के द्वारा फर्जी पुलिस स्टेशन का माहौल दिखकर महिला को डराया गया जिससे महिला ने घबराकर साइबर अपराधियों द्वारा बताये गए अलग-अलग बैंक खतों में लगभग 20.25 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिये, इस मामले में पुलिस द्वारा कार्यवाही की गयी है।
  • प्रतापगढ़ के एक 52 वर्षीय पंचायत राज विभाग के सफाई कर्मचारी को साइबर अपराधियों द्वारा खुद को लखनऊ पुलिस के क्राइम ब्रांच अधिकारी बताकर उन्हें क़ानूनी मामलों में झूठे आरोप लगाकर फंसने और जेल भेजने की धमकी दी गयी, अपराधियों द्वारा पीड़ित से कई बार पैसे ट्रांसफर करवाए गए और जब पैसे ख़त्म हो गए तो पीड़ित ने अपने परिवार के गहने गिरवी रखकर कर्ज लिया और अपराधियों को दिया। अपराधियों ने लगभग 1 लाख रूपये और गहने पीड़ित से ठगे, पीड़ित ने बढ़ते मानसिक दबाव और आर्थिक समस्या के कारण 30 जनवरी 2025 को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। इस मामले में पुलिस ने 4 आरोपियों को गिरफ्तार किया जिनमे से एक नाबालिग था।
  • मध्यप्रदेश के मऊगंज की एक 35 वर्षीय शिक्षिका को साइबर अपराधियों ने डिजिटल अरेस्ट में रखा, अपराधियों द्वारा कहा गया कि पीड़िता द्वारा भेजे गए एक पार्सल में अवैध सामान मिला है, अगर उन्हें पैसे ट्रांसफर नहीं किये तो पीड़िता को गिरफ्तार कर लिया जायेगा, गिरफ्तारी की बात सुनकर पीड़िता डर गयी और अपराधियों द्वारा दिए गए बैंक खतों में 22000/- और 5500/- रुपये ट्रांसफर कर दिये। इस घटना से पीड़िता घबरा गई और जहर खा लिया, अस्पताल ले जाते समय पीड़िता की रास्ते में मृत्यु हो गयी।
  • मेरे एक पहचान के व्यक्ति को एक साइबर अपराधी का फोनकॉल आया, जिसमें अपराधी ने खुद को पुलिस अधिकारी बताया और किसी मामले में फंसाने की बात करने लगा, मामला रफा- दफा करने के लिए उसने पैसे ट्रांसफर करने को कहा और असभ्य भाषा का प्रयोग करने लगा, जिससे पीड़ित बुरी तरह से डर गया, वह किसी तरह घर से निकल कर सीधे अपने एक जानकार दोस्त के पास गया और उसे पूरी बात बताई, पीड़ित और उसके दोस्त को अब तक पूरा मामला समझ में आ चूका था कि अपराधी कोई पुलिस वाला नहीं है, बल्कि उससे पैसे ठगने की कोशिश की जा रही है, थोड़ी सी सावधानी और सतर्कता से साइबर अपराधी पैसे ठग नहीं पाया।

इस तरह के हजारों मामले हैं जिनमें से कुछ मामलों में लोगों की जान तक चली जाती है, मेहनत से कमाए पैसे चले जाते हैं, पैसे गंवाने के बाद कई लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं, कई मामलों में सतर्कता और सूझबुझ से इस डिजिटल अरेस्ट स्कैम से लोग बच जाते हैं।

डिजिटल अरेस्ट स्कैम से कैसे बचें ?

डिजिटल अरेस्ट स्कैम से बचने के लिए जागरुकता और सतर्कता जरुरी है, इससे बचने के लिए निम्न्लिखित उपाय किये जा सकते हैं :

👉 अनजान फोनकॉल, एसएमएस या ईमेल से सावधान रहें :

  • अगर कोई आपको फोनकॉल, एसएमएस या फिर ईमेल के द्वारा खुद को पुलिस, सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स या किसी भी सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताता है तो तुरंत विश्वास न करें।
  • साइबर ठग लोगों को डरने के लिए फर्जी सरकारी लेटरहेड, लोगो, कॉलर आईडी या पहचान पत्र का प्रयोग करते हैं ऐसे में शांत रहें और डरें या घबराएं नहीं, ऐसे व्यक्ति के पहचान की पुष्टि का प्रयास करें।

👉 व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें :

  • साइबर अपराधी, आपसे बैंक खाते का विवरण, आधार और पैन नंबर, या फिर ओटीपी जैसी संवेदनशील जानकारियां मांग सकते हैं, ऐसी कोई भी जानकारी साझा न करें।
  • कोई भी सरकारी एजेंसी फोनकॉल, एसएमएएस या ईमेल के जरिये इस तरह की संवेदनशील जानकारी नहीं मांगती है।
  • सोशल मीडिया पर अपनी निजी जानकारियां शेयर न करें।

👉 तुरंत पैसे ट्रांसफर न करें :

  • अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों को बताएं। अकेले फैसला न लें, क्योंकि ठग आपको अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं और पैसे ट्रांसफर करने के लिए कहते हैं।
  • साइबर अपराधियों का उद्देश्य अंत में आपसे पैसे निकलवाना होता है, ये ठग आपसे केस सेटलमेंट के लिए तुरंत पैसे ट्रांसफर करने को कहते हैं, डर या घबराहट में पैसे ट्रांसफर न करें।
  • अगर आपने पैसे ट्रांसफर कर दिए हैं तो घबराएं नहीं, आपने जिस बैंक अकाउंट या यूपीआई आईडी में पैसे ट्रांसफर किये हैं उनकी डिटेल्स, ट्रांजैक्शन आईडी आदि को नोट कर लें या स्क्रीनशॉट लेकर सेव कर लें।

👉 शिकायत दर्ज कराएं :

  • अगर आप डिजिटल अरेस्ट स्कैम के शिकार हो जाते हैं तो तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 में या फिर साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल cybercrime.gov.in में अपनी शिकायत दर्ज कराएं।
  • शिकायत दर्ज कराने में देरी न करें, क्योंकि शिकायत में देरी करने पर पैसे वापस मिलने की सम्भावना कम हो जाती है।
  • अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन के साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराएं।
  • अपने बैंक से तुरंत संपर्क करें और फ्रॉड ट्रांजैक्शन की जानकारी दें, ताकि बैंक, ठगी में इस्तेमाल किये गए बैंक खाते को ब्लॉक करने की प्रक्रिया शुरू कर सके, जिससे ठग पैसे न निकाल सके।
  • अगर आपने यूपीआई से पैसे ट्रांसफर किया है तो अपने यूपीआई सर्विस प्रोवाइडर(जैसे फोनपे, गूगलपे आदि) को तुरंत सूचित करें।
  • आप पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट npci.org.in पर भी शिकायत कर सकते हैं।

डिजिटल अरेस्ट को लेकर जागरूकता के प्रयास

भारत सरकार ने डिजिटल अरेस्ट स्कैम और अन्य साइबर अपराधों के खिलाफ जागरुकता फैलाने और नागरिकों को इससे सुरक्षित रखने के उद्देश्य से कई कदम उठाये हैं, सरकार द्वारा किये जा रहे जागरुकता के प्रमुख प्रयास निम्न हैं :

  • सरकार, समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर विज्ञापनों के माध्यम से डिजिटल अरेस्ट स्कैम और अन्य साइबर अपराधों के प्रति नागरिकों को जागरुक कर रही है।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र(I4C) के द्वारा सोशल मीडिया पर साइबर दोस्त के नाम से लोगों को साइबर अपराधों के प्रति जागरुक किया जा रहा है।
  • दूरसंचार विभाग(DoT) के कॉलरट्यून अभियान के द्वारा भी लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम(Cert-In) ने भी डिजिटल अरेस्ट स्कैम को पहचानने और इससे बचने के तरीकों पर मागर्दर्शन जारी किया है।
  • भारत सरकार ने साइबर अपराधों की शिकायत दर्ज कराने के लिए हेल्पलाइन नंबर 1930 और राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल cybercrime.gov.in जारी किया है।

भारत सरकार और राज्य सरकारों के आलावा समाचार पत्रों, न्यूज़ चैनल्स, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स आदि के द्वारा भी डिजिटल अरेस्ट स्कैम और अन्य साइबर अपराधों के प्रति लोगों को जागरुक किया जा रहा है।

क्या डिजिटल अरेस्ट स्कैम से ठगे गए पैसे वापस मिल सकते हैं ?

डिजिटल अरेस्ट स्कैम में ठगे गए पैसे को वापस पाना काफी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि साइबर ठग फर्जी बैंक खतों का उपयोग करते हैं और पैसे को तुरंत दूसरे बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर देते हैं इसलिए जितनी जल्दी हो सके इसकी शिकायत और सूचना साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930, नजदीकी पुलिस स्टेशन और अपने बैंक को दे देनी चाहिए, जिससे जल्दी कार्यवाही शुरू की जा सके, इससे पैसे वापस मिलने की संभावना बढ़ जाती है। डिजिटल अरेस्ट स्कैम से ठगे गए पैसे वापस मिलने के कुछ उदाहरण निम्न हैं :

  • दिल्ली पुलिस के साइबर यूनिट ने दो साइबर अपराधियों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने खुद को TRAI और महाराष्ट्र पुलिस का अधिकारी बताकर दिल्ली के एक 92 वर्षीय बुजुर्ग को फर्जी गिरफ्तारी वारंट दिखाया, जिससे डरकर उस बुजुर्ग ने  2.2 करोड़ रूपये ट्रांसफर कर दिए थे। पुलिस ने तुरंत कार्यवाही शुरु की और जांच के बाद पूरे 2.2 करोड़ रूपये वापस पीड़ित के बैंक खाते में जमा करवा दिये।
  • पुणे की एक सेवानिवृत्त महिला वैज्ञानिक को साइबर अपराधियों ने 4 दिनों तक घर में डिजिटल अरेस्ट रखा था, केवल बैंक जाने की अनुमति दी थी जहाँ से पीड़िता ने 1.82 करोड़ रूपये अपराधियों के बताये बैंक खाते में ट्रांसफर किये थे जिनमें से 40 लाख रुपये पुणे साइबर क्राइम पुलिस ने कोर्ट से अनुमति मिलने पर पीड़िता को लौटा दिए थे। 
  • अप्रैल 2025 में, गुरुग्राम में एक गृहणी को एक फर्जी पुलिस अधिकारी का फोनकॉल आया, उसने कहा कि पीड़िता के नाम से भेजे गए एक अंतर्राष्ट्रीय पार्सल में अवैध दवाईयाँ पायी गई हैं, अगर पीड़िता जाँच में सहयोग नहीं करती है तो डिजिटल अरेस्ट करके उसके खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही की जाएगी। डरकर पीड़िता ने अपराधी के बताये गए बैंक खाते में 50000/- रुपये ट्रांसफर कर दिए, अपने परिवार के सदस्यों से बात करने पर पीड़िता को पता चला कि वह साइबर फ्रॉड का शिकार हुई है, उन्होंने तुरंत cybercrime.gov.in पर शिकायत की, पुलिस ने तुरंत कार्यवाही शुरु की और उस बैंक खाते को फ्रीज करवाया जिसमें पैसे ट्रांसफर किये गए थे, अपराधियों ने तब तक पूरी रकम नहीं निकली थी। जाँच और क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद पूरी राशि वापस पीड़िता के खाते में डाल दिए गये। 
इस तरह के कई मामलों में पुलिस ने त्वरित कार्यवाही करते हुए, जाँच और क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करके पीड़ित/पीड़िता को पूरी या आंशिक राशि लौटाई है। 

निष्कर्ष

डिजिटल अरेस्ट, साइबर अपराधियों के द्वारा लोगों से पैसे ठगने का एक ख़तरनाक हथकंडा है, जिसमें लोगों के मेहनत की कमाई पर इनकी साइबर ठगों की नजर होती है, इससे बचने के लिए जागरूकता और सतर्कता सबसे जरुरी है। अनजान फोनकॉल, विशेष रूप से सरकारी एजेंसियों के नाम से आने वाली धमकियों पर भरोसा न करें। निजी जानकारियां, जैसे बैंक विवरण या OTP कभी भी शेयर न करें। संदिग्ध फोनकॉल आने पर तुरंत 1930 पर कॉल करें या cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें। अपने परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों को इस स्कैम के बारे में जागरुक करें, ताकि वे भी सावधान रहें। कानून में "डिजिटल अरेस्ट" जैसा कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए ठगों के झांसे में न आएं। साइबर सुरक्षा के उपायों की जानकारी, सतर्कता और त्वरित कार्रवाई से हम सभी इस तरह के किसी भी साइबर अपराधों के खतरे से सुरक्षित रह सकते हैं।

Chandan Pandey

नमस्कार दोस्तों, मेरा नाम चंदन पाण्डेय है और मैं एक टेक एन्थुसिएस्ट और गैजेट प्रेमी हूँ । मैं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो रहे शानदार खोजों, आविष्कारों और नए नए अपडेट्स को लेकर बहुत रोमांचित हूँ | आइए, साथ मिलकर टेक्नोलॉजी की दुनिया को खोजें और नए नए टेक्नोलॉजी और गैजेट्स के बारे में जानकारी प्राप्त करें और उनसे अपने जीवन को आसान बनायें !

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